जो कदम कल शिवराज पाटिल ने उठाया वह उन्हें १ साल पहले उठा लेना चाहिए था । लेकिन क्या करे सत्ता का मोह ऐसा है की छूटता ही नही है खैर इसमे उनका कोई दोष नही है । सबसे बड़ी बात यह है की यूपीए के घटक दल भी इनके इस्तीफे की मांग कर रहे थे इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है की सत्ता में शामिल लोग ही उनके काबिलियत को लेकर पेराश्न्चिंहउठा रहे हैं । खैर अब उनको भी शान्ति मिल गयी होगी की देर से ही सही लेकिन कदम उठाया तो गया । अब इस समय इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता की यह कदम चुनावी लाभ उठाने के लिए लिया गया है । मुंबई में एक तरफ़ जान बचने की कशमकश चल रही थी दूसरी तरफ़ दिल्ली में मतदान हो रहा था उस समय लोगों के दिमाग पर बमविस्फोट का भय चढा हुआ था ऐसे में मतदान का रूख भी बदला । कांग्रेस को लगा की यही समय है जरूरी फेरबदल कर लिया जाए नही तो इसका नुक्सान लोकसभा चुनाव में हो सकता है । कांग्रेस के नेता जिस तरह बयां दे रहे हैं उससे भी वे लोग लगता नही की वे ज्यादा गंभीर हैं । आर आर पाटिल महाराष्ट्रा के गृह मिनिस्टर का बयां तो निःसंदेह हाश्यास्पद था ।
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है
1 वर्ष पहले
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