रविवार, 8 जून 2008

कत्ल की रात से रहे जूझने को तैयार

कहा जाता है कि मतदान से पहले की रात नेताओं के लिए और परीक्षा से पहली कीरात परीक्षार्थियों के लिए कत्ल की रात होती है । लेकिन इस रात का सामना कैसे करें इस बात को लेकर परीक्षार्थी असमंजस मे हैं क्योंकि उनकी तैयारी पूरी नहीं है ऐसे मे जब उनकी तैयारी के बरे मे किसी से बात की जाए तो उनका सीधा सा जवाब होता है बस यार गप्पें हांक देंगे ऐसे ही तो अब तक नम्बर पाते आयें हैं तो अब चिंता क्यों करे । बात भी कुछ सही प्रतीत होती है क्योंकि उनका यही फार्मूला उन्हें अभी तक सफलता देते आया है तो जब तक असफलता हाथ नहीं लगेगी तब तक तो वे दूसरे तरीके को क्यों अपनाएंगे ॥

शनिवार, 7 जून 2008

हमारी रक्षा कौन करेगा

शिवाजी की मूर्ति बनने के खिलाफ लोकसत्ता के संपादक ने जो लिखा उसके लिए उन्हें किसी से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं थी , उन्होंने अपने अधिकार का प्रयोग संविधान के द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत किया था , लेकिन घर पर इस मामले को लेकर तोड़ फोड़ की गयी जो महाराष्ट्र के राजनितिक दल के किसी विधायक ने कराई थी । क्या इनके खिलाफ मौलिक अधिकारों के हनन का मामला नहीं बनता है । वैसे भी इधर पत्रकारों पर हमले की घटनाएँ काफी बढ़ गयी है । पटना मी भी मेडिकल कोलेज के छात्रों ने पत्रकारों को पिता , मैं पूछता हूँ उनका दोष क्या था ,वे पत्रकारों की ग़लत कारगुजारियों को कैमरे मे उतार रहे थे यही उनकी गलती थी न साथ मे डॉक्टरों ने अभिभावकों को भी पीटा। गुजरात मे भी २ पत्रकारों को पुलिस प्रशासन ने तंग कर रखा है क्या हम पत्रकार भाई ऐसे ही पीटते रहेंगे । दुनिया को सच बताने के लिए हम दिन रात जागते हैं लेकिन हमारे सुरक्षा की भी तो गारंटी होनी चाहिए ।

गुरुवार, 5 जून 2008

मूर्ति बनाना ज्यादा महत्वपूर्ण है

महाराष्ट्र सरकार ने निर्णय किया है कि मैरीन ड्राइव पर शिवाजी की मंजिली मकान के जितनी ऊँची मूर्ति लगेगी और साथ ही वर्तमान सरकार के कार्यकाल के अंतर्गत ही इस कार्य को पूरा कर लिया जाएगा । इस पर २०० करोर से ज्यादा का खर्च आएगा । कहने का मतलब सदा है की सरकार की प्राथमिकता में अब मूर्ति लगाना ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है । प्रदेश सरकार को विदर्भ के किसानों की कोई चिंता नहीं है । मैं यह बिल्कुल नही कहता की शिवाजी की मूर्ति नहीं लगनी चाहिए लेकिन ऐसा भी क्या है की इतनी बेदी राशिसिर्फ़ मूर्ती लगवाने में खर्च की जाए इससे अन्य समस्यायों का समाधान किया जा सकता है जैसे बार बालाओं का पूनर्स्थापन , किसानों की समस्यायों का समाधान ,गरीबों के लिए मकान बनवाने का कार्य इत्यादि। sहिवाजी की चोटी मूर्ती लगाकर भी उनके प्रति श्रद्धा अर्पित की जा सकती है ।

सोमवार, 2 जून 2008

विषय को लेकर ही थी समस्या

भोपाल में पिछले दिनों एक नए अखबार के आने से ऐसा लगा कि यहाँ भी मीडिया वर शुरू हो गया है । इसकी परिणिति तब देखने को मिली जब भोपाल के मीडिया dhurandharon ने इस पर एक परिचर्चा का आयोजन कर दिया जिसका विषय था भोपाल में मीडिया वर किसके हित में । वास्तव में वर तो दो पक्षों के मध्य होता है लेकिन भोपाल का युद्ध तो एकतरफा है । यहाँ एक नया मीडिया हॉउस अपनी पैठ ज़माने के लिए दूसरे की ग़लत ख़बरों को बिना मतलब का निशाना बना रहा है । यह कार्रवाई पूरी तरह से एकतरफा है दूसरे ने इसका कोई प्रत्युत्तर नही दिया , यह लड़ाई एक तरफ़ से ही तो है , तो फ़िर यह वार कैसा वार में तो दो तरफा कार्रवाई होती है । लेकिन यह बात वहाँ बिल्कुल नहीं आयी , जबकि संबंधित अख़बारों के एडिटर भी वहाँ थे । सब अपने दिमाग में यह बैठा चुके थे कि हाँ यह मीडिया वार है , तो फ़िर क्या किया जा सकता है । इस चर्चा में लग रहा था कि जोरदार गहमागहमी होगी लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ इसलिय शायद जब चर्चा समाप्त हो गयी तो कुछेक लोग आयोजकों को शांतिपूर्ण माहौल में चर्चा के समाप्त होने पर बधाई दे रहे थे , गहमागहमी न होने का एक कारण यह भी था कि आक्रमंनकर्ता अखबार का कोई प्रतिनिधि वहाँ नहीं था ।