गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

यदि ऐसा होता तो कितना अच्छा होता

जब संत वैलेंटाइन को रजा ने राजद्रोह का आरोप लगाकर फांसी दी थी उसके बाद जो यह एक पर्व की तरह मनाया जा रहा है तो संत वल्लेंतिने की आत्मा भी सोच रही होगी की मैंने तो सपने में भी नही सोचा नही था की यह २१ वी सदी में इतना प्रसिद्द होगा । लेकिन बात सोचने की है इस पर्व से फायदा किसका फायदा होगा आज यह कहने की बात नही की इससे न तो हमारा फायदा होगा न किसी दूसरे का इससे सिर्फ़ फायदा बाजार को है ।
कितना अच्छा होता इस प्यार पर्व पर पूरी दुनिया भेदभाव मिटाकर एक हो जाती और सारा भेदभाव मिट जाता तो फ़िर कहा जाता न की प्यार की जीत हुयी ऐसे में कौन क्या करता है कौन क्या पाटा है किसी को पता ही नही चलता बस प्रत्येक साल यह आता है और मुनाफा कमाकर चला जाता है । आज जिसको प्यार कहा जाता है उसके इजहार के लिए इस दिन का होना इतना अनिवार्य नही है वह तो किसी भी दिन हो सकता है । काश इस दिन पूरी दुनिया एक हो जाती कोई भेदभाव जात पात उंच नीच के नाम पर नही होता मजहब के नाम पर लडियां बंद हो जाती तो सही मायने में वैलेंटाइन डे की जीत होती।