गुरुवार, 25 सितंबर 2008

अफ़सोस सोच नहीं बदली

कहा जाता है कि आपके परिवर्तन का सबसे बड़ा परिचायक है कि आपके सोच में परिवर्तन हुआ है कि नहीं । आप लाख अपनी वेश भूषा बदल ले और नए आधुनिक कपड़े पहन ले फ़िर भी आप तभी लोगों कि नजर में पहचाने जायेंगे जब आपकी सोच में परिवर्तन आएगा । आपने गांव के लोगों को देखा होगा जब वे गाँव से बह्गर कमाने के लिए जाते है और फ़िर जब गांव लौटकर आते है तो उनका रंग ढंग सब बदला होता हैवे अपनी भाषा भी भूल जाते हैं इससे सबसे ज्यादा नुक्सान भी उन्ही का होता है गाँव में उन्ही कि किरकिरी होतो है वे उन्ही कि उन्ही कि नजरों में गिर जाते हैं लेकिन इससे हासिल क्या होता है वे तो वही बता सकते हैं ॥ कहने का अर्थ यह कि धोबी का कुत्ता न घर का ना घाट का। ऐसा ही कुछ हुआ पिछले दिनों जब हम दिल्ली गए तो जब वहां से लौटे तो फ़िर लगा कि जैसे फिजा बदल गयी है हर कोई अलग सा दिखने लगा जब हम डेल्ही गए थे उस समय तो लगा था कि जब अगले बार मिलेंगे तो शायद २ गुने उत्साह से मिलेंगे लेकिन अहमर सारा उत्साह काफूर हो चुका था हम आर्ष से फर्श पर आ गए थे महानगर कि संस्कृति हमारे सर पर पूरी तरह चढ़ चुकी थी अहम आपस में ही इज्ज़त खो चुके थे बगल से हम ऐसे गुजर जाते है जैसे कि हर कोई हर किसी से अनजान है अब तो यही लगता है कि हम क्यों मिले बेहतर होता कि हम नहीं मिलते । यदि कोई सोच बदल्लकर आता तो वास्तव में बहुत खुशी होती लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ेगा कि सोच आन्ही बदली । काश सोच बदली होती

बुधवार, 24 सितंबर 2008

हम मेहमानों का सवागत करना जानते हैं

इस समय ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत के दौरी पर है और टीम देखने से लगता है की काफ़ी भयभीत है लेकिन हम यह बताना चाहते है की भारत मेहमानों की आवोभगत करना जानती है और आप बिल्कुल ना डरें यह वही देश है जहाँ मेहमानों के स्वागत के लिए लोगों ने अपनी जान तक से दी है । इस समय ऑस्ट्रेलिया टीम बहुत दरी हुई है जिस तरह का माहौल है उस वातावरण को देखकर यह डर होना स्वाभाविक है लेकिन आप अतिरिक्त चिंता न करें । आप अपना पूरा ध्यान खेल पर लगायें नही तो आपका खेल प्रभावित होगा । हम सभी क्रिकेट प्रेमी अच्छा क्रिकेट देखना चाहते है इसलिय आप सिर्फ़ अपना ध्यान खेल पर लगायें ।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

क्यों मानते हैं हिन्दी दिवस

१४ सितम्बर बीत चुका है एक और हिन्दी दिवस चला गया लेकिन हमने हासिल क्या किया । शायद कुछ नही फ़िर वही पुराना राग कोई साहित्यकार आया भाषण दिया और फ़िर समापन हो गया हिन्दी दिवस का , आख़िर ऐसा क्यों न हो और आगे भी होता रहेगा क्योंकि हम भारतीय जो ठहरे हमें हर चीज़ चोरी करने की आदत सी हो गयी है जब हमने अपनी राजनितिक व्यवस्था को ही चोरी कर लिया है तो फ़िर भाषा किस खेत की मूली है । हम और इसके लिए उत्तरदायी संस्था भी इस दिशा में कुछ नहीं कर रही है दुनिया में हर देश का अपनी भाषा में अच्छी किताब है लेकिन भारत में इसकी निहायत कमी है हम इंग्लिश किताब पढने में और बोलने में भी फक्र महसूस करते हैं क्योंकि हम कुछ करना नहीं चाहते हैं ठीक है हम भाग्य के सहारे जो ठहरे । हमारा कल्याण भी दूसरा ही करेगा ।

रविवार, 14 सितंबर 2008

..........नहीं तो पूरा भारत जल उठेगा

लगातार बम्बिस्फोतों से देश के कई शहर जल रहें है जयपुर अहमदाबाद डेल्ही क्या बात करें पूरा देश ही जल जाएगा क्यों नहीं यह रफ्त्तार कम हो रही है या रूक रही है ,इन सब का असर तो आमजनता पर ही पड़ता है । नेताओं का क्या है वो तो एसी के अंदर ही बंद रहते है मरे भी तो जनता जो भी हो जनता का हो । आज भास्कर में छपी रिपोर्ट के अनुसार गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने तीन बार मिडिया से बात करने के दौरान ड्रेस बदली मतलब जनता मरे कोई बात नही हमें तो मंत्री होने का परिचय देना है । जरा कोई पूछे उनसे की उन्हें किसी फैशन परेड में जाना था क्या यदि वहीँ जाना था तो फ़िर दिखावटी तौर पर अस्पताल क्यों गए । हर विस्फोट के बाद वे एक ही तरह का बयान देते है लेकिन आज तक पहले के सभी मामलों की जांच की दिशा में कोई ख़ास प्रगति नहीं हो पायी है आज देश के पास आतंकवाद से लड़ने का कोई हथियार नहीं है एक जो पोटा था उसे भी ख़त्म कर दिया गया तो बताइए अब क्या होगा।

सोमवार, 8 सितंबर 2008

बिहार की हालत और हो गयी बदतर

माना की बिहार में जल का स्तर कम होना शुरू हो गया है लेकिन अब तो वहां की परेशानियाँ और भी बढ़ गयी है क्योकि वहां अब महामारी का प्रकोप काफ़ी बढ़ गया है सही मातृ में वहां दवाई उपलब्ध नहीं है लोग मरन्नासन्न अवस्था में हैं लेकिन सुनाने वालों की संख्या बहुत कम है। बिहार को जो सुविधा मिली है वह काफ़ी काम है यदि १००० रूपया को ४० लाख लोगों में बांटे तो वह २५०० से कुछ ही ज्यादा होता है तो आप ख़ुद ही समझिये की जो लोग इतने दिनों में अपना घर द्वार सहित कितने रिशेदारों को भी खो चुके है जरा सोचकर देखिये इतने कम पैसे में उनके किस जरूरत की पूर्ति होगी न तो वे इस पैसे से अपना घर बनवा सकते हैं और न ही कुछ अन्य चीजें । बहुत होगा तो वे इस पैसे से वे कुछ दिनों तक सिर्फ़ अपना पेट ही भर सकते हैं । लेकिन आगे क्या होगा इस बारे में किसी ने कुछ नहीं सोचा । इस समय जरूरत है की हम सभी देश्वाशी बिहार के लोगों के साथ खड़ा हों क्योंकि उन्हें इस समय आर्थिक के साथ साथ भावनात्मक सहयोग की आवश्यकता की जरूरत है ।

शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

क्या करें यहाँ कोई पैसा नहीं लेता

बहुत हल्ला कर रही थी सरकार।कुछ नही होगा लेकिन बहुत कुछ हो गया । परमाणु डील के नाम पर खरीद फ़रोख्त कर सरकार तो बच गयी लेकिन जिस चीज़ के लिए आपने इतना किया वहीँ पर जाके नैया लटक गयी , मनमोहन सरकार ने इस मुद्दे पर जनता सहित अन्य राजनितिक दलों को भी धोखा दिया है । आज हमारी संप्रभुता ताक पर रख दी गयी है जिसके बिना किसी राज्य का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता लेकिन अब हो भी तो क्या सरकार अमरीकी जाल में फंस ही गयी है सरकार को आख़िर कहना ही पड गया की अब हम परमाणु परीक्षण नहीं करेंगे जी की बिल्कुल नहीं होना चाहिए था कहने का अर्थ यह है की आपकी सरकार है तो आपके मन में जो भी आएगा आप करते जाइयेगा आप यह नही देखियेगा की इसका क्या असर होगा।सरकार का यहाँ भी वश नहीं चला नहीं तो यहाँ भी खरीद फ़रोख्त कर लेते लेकिन क्या करें लोग हैं की घूस लेंगे ही नहीं क्योंकि वे बहुत इमानदार हैं ।

मंगलवार, 2 सितंबर 2008

कौन सुनेगा बिहार की .......................

इन दिनों बिहार बाढ़ की चपेट में है और लगभग ४० लाख लोग इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं । इस मुश्किल की घड़ी में हम सब देश्वाशी को चाहिए की बिहार की जनता का साथ दे लेकिन देखिये सरकार ही इन लोगों के साथ नहीं है यदि सरकार कोई दिशानिर्देश जारी भी करती है तो अफसरशाही का तो यह आलम है की वे सरकार पर दोष लाद देते हैं जरा सोचये क्या इसी चीज़ के लिए हमारे नेता वोट मांगने आते हैं । जब काम पड़ी तो हाथ फैलाकर वोट मांग लिया अब समय है की सरकार भी उन सभी समस्या से ग्रस्त लोगों की मदद करे जो बाढ़ रुपी आपदा का सामना कर रहें हैं । यदि हम दिल्ली में बैठें बिहार के नेताओं की बात करें तो वे भी लोगों की मदद करने के बजाय इसका इस्तेमाल चुनावी अभियान के रूप में कर रहें हैं। जो भी दल वाले हैं वो इस समय यदि लोगों की मदद करते तो उन्हें आराम से वोट मिल जाता लेकिन वो चीज़ कोई नहीं करेगा । केन्द्र सरकार ने १००० करोर का पॅकेज दिया है लेकिन कितना लोगों तक पहुंचेगा इस बारे में अभी संदेह ही है।