शनिवार, 20 दिसंबर 2008

अंतुले का बयान निराशाजनक

एक तरफ़ हमारे देश के जवान देश की रक्षा के लिए जान से रहे हैं दूसरी तरफ़ कोई अंतुले उन्हें साजिस करार दे रहा है अरे नेताजी इनने तो मत गिर जाओ । यदि आप अपने क्षेत्र में विकास कार्य करे और कोई कहे की यह साजिश का हिस्सा है तो आप क्या कहेंगे । जरा सोचिये उस समय आपको कैसा लगेगा जाहिर है उस समय आपको अच्छा नही लगेगा । तो जरा ये बताइए की जिस करकरे ने अपनी जान खोयी है उसकी सहादत को आप निरर्थक करार दे रहे हो यह उस समय हो रहा है जब की उसके परिवार को सहानुभूति की सख्त जरूरत है ।

सोमवार, 1 दिसंबर 2008

यह तो पहले ही हो जाना था

जो कदम कल शिवराज पाटिल ने उठाया वह उन्हें १ साल पहले उठा लेना चाहिए था । लेकिन क्या करे सत्ता का मोह ऐसा है की छूटता ही नही है खैर इसमे उनका कोई दोष नही है । सबसे बड़ी बात यह है की यूपीए के घटक दल भी इनके इस्तीफे की मांग कर रहे थे इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है की सत्ता में शामिल लोग ही उनके काबिलियत को लेकर पेराश्न्चिंहउठा रहे हैं । खैर अब उनको भी शान्ति मिल गयी होगी की देर से ही सही लेकिन कदम उठाया तो गया । अब इस समय इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता की यह कदम चुनावी लाभ उठाने के लिए लिया गया है । मुंबई में एक तरफ़ जान बचने की कशमकश चल रही थी दूसरी तरफ़ दिल्ली में मतदान हो रहा था उस समय लोगों के दिमाग पर बमविस्फोट का भय चढा हुआ था ऐसे में मतदान का रूख भी बदला । कांग्रेस को लगा की यही समय है जरूरी फेरबदल कर लिया जाए नही तो इसका नुक्सान लोकसभा चुनाव में हो सकता है । कांग्रेस के नेता जिस तरह बयां दे रहे हैं उससे भी वे लोग लगता नही की वे ज्यादा गंभीर हैं । आर आर पाटिल महाराष्ट्रा के गृह मिनिस्टर का बयां तो निःसंदेह हाश्यास्पद था ।

शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

जान बड़ी या पैसा

हमें जब पैसा कमाना होता है तो अधिकतर लोग मुंबई की तरफ़ जाते है लेकिन सवाल पैदा होता है की जान ज्यादा प्यारी है या पैसा । पिछले कुछ समय से जैसी आतंकी वारदातें हुयी है उससे तो यही लगता है की जान की कोई कीमत ही नही रह गयी है । जब जिसकी इच्छा होती है हमें गाजर मुली की तरह काटकर चला जाता है । इसके लिए हम सरकार को दोषी ठहरा सकते है लेकिन पूरी तरह नही क्योंकि हम भी जागरूक नही हैं । मुंबई में जहाँ भी घटनाएँ हुई है वहां रह रहे लोगों कजो यह पता था की कुछ लोग संदिग्ध हैं लेकिन वे अपनी जिम्मेवारी से बचते रहे और परिणाम यह रहा की सबसे बड़ी आतंकी घटना को अंजाम दिया गया । इस बार तो एकदम सीधा वार किया गया । इससे यह पता चलता है की वे कितने तेज हैं। और हम पीछे रह जाते हैं । इंग्लिश टीम का क्रिकेट दौरा रद्द हो गया जिस मेहमानबाजी पर हम इतराते थे वही आज हमारे लिए कलंक बन गयी अब हम किस आधार पर कहें की हम पाक में खेलने नही जायेंगे क्योंकि हमारा घर भ तो उतना ही असुरक्षित है। हम दुनिया में तीसरी बड़ी शक्ति होने का दावा करते हैं लेकिन ये बताइए की जब जान ही सुरक्षित नही तो फ़िर अन्य चीसों की क्या गुअरंती है । हा,ने अमरीका से तरक्की करनी सीख ली तो फ़िर हम इन आतंकियों से निबटने का तरीका क्यों नही सीख पाये । एक बार ९/११ होने के बाद अमरीका में फ़िर वैसी कोई घटना नही हुयी प्रयास तो वहां भी किए गए थे और हमारे यहाँ तो हर रोज ही ऐसी घटना हो रही है । सरकार की कारगुजारियों की मैं चर्चा बिल्कुल भी नही करूँगा क्योंकि उनका तो इसमे कुछ भी नही जाता है दो सद्भावना भरी लाइन कह दी और पैसा दे दिया । क्योंकि उनके पास इच्छा शक्ति का अभाव है वरना इन समस्यायों का समाधान हम कब कर लिए होते लेकिन यहाँ भी तुष्टिकरण की नीति अपनाई जा रही है । आज भारत जल रहा है और हम जनता को ही मिलकर कुछ करना होगा अपने देश की साख बचानी होगी।

मंगलवार, 25 नवंबर 2008

जनता को सिर्फ़ दुःख देते हैं

देखिय चुनावों में एक ओर जहाँ जमकर पैसा बहाया जाता है वही जनता को भी काफ़ी दुःख दिया जाता है । काम तो कोई बजी नेता नही करता लेकिन वोट मांगने सब आ जाते हैं पता नही इन लोगों को न्शाराम आती है की नही । एक ओर तो या आचार संहिता का अलंघन भी करते हैं देर रात तक चुनाव प्रचार के नाम पर सिर्फ़ शोर करते हैं । बताइए एक तो ५ साल या अपना काम नही करते और चुनाव प्रचार के समय हम जनता को दुःख देते हैं ।

शुक्रवार, 21 नवंबर 2008

मदद की जरूरत अमीरों को है गरीबों को नहीं

आज अखबार खोला और जब ख़बर पढ़ा तो लगा की जो सरकार को चुनती है उसके प्रति सरकार का कोई दायित्वा नही है और जो लोग वोट देने नही जाते सरकार उनकी चिंता ही ज्यादा करती है । अब तो कहना पडेगा की प्रजातंत्र अमीरों का ,अमीरों के लिए और अमीरों की सरकार है तो यह ग़लत नही होगा । आप ही जरा बताइए इस देश में मदद की जरूरत किसे है गरीबो को या एयरलाइन्स के मालिकों को , आमजन को गाड़ी चलाबे के लिए ५५ रुपये में पेट्रोल खरीदना पड़ रहा है लेकिन एयरलाइन्स के मालिकको हवाई जहाज चलाने के लिए तेल ४० से भी कम दाम पर तेल मिल रहा है । अब क्यों मिल रहा है इस बारे में तो सरकार ही बता सकती है लेकिन हमें तो यही लगता है की देश में कृषि सिंचाई सुविधा से ज्यादा एयरलाइन्स को मदद पहुँचने की है । ज्यादा उत्पादन होने से पेट भरेगा लेकिन ज्यादा जहाज पर चढ़ने से पैसा घटेगा और यह हमारा पेट ही काटेगा । लेकिन सरकार के लिए जहाज ज्यादा महत्वपूर्ण है । यदि ऐसा है तो चुनावी घोषणापत्र में जनता के लिए इतने वादे क्यों करते हैं बेहतर तो यही हीकी आप इन अमीरों के लिए ही वादे करें। यही आपको वोट देंगे और पैसा भी॥ पर्यटन उद्योग घाटे में जाने से इतना बड़ा अहित नही होता जितना की अभी सरकार कर रही है । क्यों चुनावों के समय गरीबी हटाने का रोना रोते है । बेहतर तो होगा की इन गरीबों को ही हटा दे। न रहेगा बॉस न बजेगी बांसुरी .मतलब न रहेंगे गरीब न होंगी तकलीफ । फ़िर सरकार और उनके अमीर दोस्त सब खुश रहें..

किस पर करें कोई विश्वास

आज दुनिया का हर रिश्ता हाशिये पर है चाहे माँ बाप का हो या कोई अन्य रिश्ता हर रिश्ते की एक ही हालत है किसी भी रिश्ते पर कोई भी विश्वास नही करता । सवाल उठता है क्यों नही करता आख़िर जब बेटा बेटी ही माँ बाप का कत्ल करने लगेंगे तो कैसे कोई विश्वास करेगा किसी पर । जिस दिन मिस मेरठ की माँ ने उसे जन्म दिया होगा उस दिन सोचा भी नही होगा की एक दिन इसी के हाथों मेरेहत्या होगी । कम से कम इतना बुरा तो कोई नही सोचता आख़िर सोचे भी तो कैसे वह अपना खून है वह कैसे दगा कर सकता है । लेकिन आज ऐसा हो रहा है मिस मेरठ ने अपने दोस्त की मदद से अपने परिजनों की हत्या की है इसके पीछे की कहानी जो भी हो लेकिन बात इतनी गंभीर भी नही थी की उसका अंजाम ह्त्या होता । आज माता पिता दुनिया में तो नही ही रहे लेकिन मिस मेरठ को क्या हासिल हुआ जिल्लत लोगों की गाली । यही न या कुछ अच्छी चीज़ मिली हमें नही लगता की कोई अच्छी चीज़ मिली होगी । माना की आज पैसों का महत्वा बढ़ गया है लेकिन इतना भी नही की हम दुनिया के हर रिश्ते को टाक पे एअख दे । अब भी समय है की हम अपनी नैतिकता को बचा सकते हैं वरना आज तक जो हम दुनिया को नैतिकता का जो पाठ पढाते है कल से हमारे पास वह भी नही होगा ।

गुरुवार, 13 नवंबर 2008

यह न कभी सोता है न ही कोई स्थाई दोस्त है

दोस्तों प्लीज चिंता मत कीजिये मैं जो कह रहा हूँ वह कोई आश्चर्य नही है क्योंकि जरा सोचकर देखिये की हमारे लिए तो ६ घंटे की नींद तो जरूरी होती है लेकिन क्या पैसा कभी सोता है क्या । यदि भारत में जागता है तो कही और सोता है , कही और जगता है तो भारत में सोता है। ऐसे में यह ख़याल आना सहज है की क्या इसे नींद नही आती क्या । यदि आप किसी को अचानक पूछेंगे की कौन कभी नही सोता है तो शायद ही कोई जवाब दे पाए लेकिन जब आप बताएँगे तो शायद ही कोई इनकार करे । ठीक वैसे ही कोई इसका स्थाई दोस्त भी नही होता किसी को अमीर और किसी को गरीब बनते देर ही कितनी लगती है आजकल । हम अमेरिका के उदहारण को देख सकते हैं । तो इस सख्स से जरा बचकर रहिये.नही तो आपको भी यह नाग के स्टाइल में दस सकता है।

गुरुवार, 6 नवंबर 2008

आख़िर उमा ने थप्पर क्यों मारा

जब आपकी पार्टी में कोई नेता होता है तो आप उसकी इज्जत करते हैं और वह भी आपकी इज्जत करता है लेकिन यदि आप उसकी इज्जत लेने पर उतारू हो तो फ़िर क्या होगा । वह भी ऐसे समय में जब चुनाव हो उस समय आपकी एक एक हरकत मिडिया के सामने होती है और आप गलती कर बैठती है तो फ़िर आपको भोगना तो पड़ेगा ही न । जरा बताइए इस समय उमा भारती पर क्या बीत रही होगी जब पार्टी का एक नेता उनके द्वारा अपमान किए जाने पर पार्टी छोरकर चला जाता है तो आपकी जगहसाई होगी न । तो फ़िर क्यों करते हैं ऐसा । इस समय यदि आपके पार्टी की अन्दर की बातों को यदि वह लीक कर दे तो नुक्सान किसका होगा बताइए । आप सीएम बनाना चाहती हैं वह तो फिलहाल नही चाहता । तो सिर्फ़ अपनी ही इज्जत मत कीजिये दूसरों की भी इज्जत किया कीजिये ।

आख़िर उमा ने थप्पर क्यों मारा

सोमवार, 3 नवंबर 2008

मंदी का असर आतंकियों पर नही

अभी पूरी दुनिया में मंदी है लेकिन ऐसा लगता है की आतंकियों की दुनिया इससे अप्रभावित है वहां कोई मंदी नही है । पिछले कई महीने में इतने सारे बम विस्फोट हो चुके हैं की कही से भी नही लगता की यहाँ अभी मंदी है । दरअसल बात यह है की इनका जो आका है न पकिस्तान वह मंदी से काफ़ी प्रभावित है उसकी हालत इतनी ख़राब हो चुकी है की अब वह आतंकियों को धन नही दे सकता । इससे आतंकी संघटन भी घबरा गए हैं उन्हें लगने लगा है की जो करना है जल्दी कर लो बाद में पता नही कुछ करने को मिले भी या नही । तो जो भी आतंकी कार्रवाई हो रही है वह हताशा का नतीजा है उससे ज्यादा कुछ भी नही। लेकिन यह कहकर हम और हमारी सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बच नही सकते आख़िर दायित्वा हमारा भी है की हम भी देशः को कुछ दे । कम से कम ऐसे बुरे समय में हम अपने ऊपर संयम रखकर और दूसरो की मदद कर हम मदद कर सकते हैं।,

मंदी से प्रभावित नही आतंकी

बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

राज ठाकरे का जनाधार ही नही है

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष rअज ठाकरे जो इस समय काली करतूत कर रहे हैं उसकी जितनी भर्तसना की जाए कम है क्योंकि जो काम वो कर रहे है वह कहीं से भी जायज नही है आख़िर किसने उनको यह अधिकार दिया की वे बिहारियों पर जुल्म धाएं । यह उनकी राजनितिक हताशा का प्रतिक है यह दर्शाता है की जनता के मध्य उनका जनाधार कम है इसलिए भी वे इस तरह के ग़लत कार्य कर रहे हैं । इसका सीधा लाभ उनके विपक्ष को मिलेगा उन्हें यह लगता होगा की हम सारा काम मराठियों के हित के लिए कर रहें हैं लेकिन बिहार टाटानगर में जो लोगों पर हमले हो रहे हैं क्या वे कभी राज ठाकरे को माफ़ करेंगे । यहाँ राज ठाकरे यह बताएं की वे अपना जनाधार किन मराठियों के मध्य बनाना चाहते हैं वे जो सिर्फ़ महाराष्ट्र में रहते हैं या फ़िर देश के अन्य भागों में रहने वाले मराठियों के मध्य भी । इतिहास गवाह है की आज तक हिंसा से किसी का भी भला नही हुआ है फ़िर यह बात उनके समझ में कुओं नही आती । राज ठाकरे के घटना को लेकर देश के अन्य भागो में जो प्रतिक्रिया हो रही है जो हिंसक करवाई हो रही है उसका देश के सेहत पर बहुत ख़राब प्रभाव पड़ेगा ।

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

यदि आपको कंप्युटर से दूर रहना हो .............

आज का युग कंप्युटर का युग है जरा आप सोचिये क्या अखबार बिना कंप्युटर के निकल सकते हैं ठीक वैसे ही पत्रकार भी कंप्युटर से दूर नही रह सकते लेकिन वायरस एक ऐसी बीमारी है की इसने पत्रकारों को कंप्युटर से दूर कर दिया वह भी एक नही पूरे एक सप्ताह के लिए । आपको लगेगा की जैसे हमारा नाश्ता कोई छीन ले गया हो लेकिन क्या करे ऐसा कभी कभी हो जाता है इसकी मार सिर्फ़ छात्रों पर ही नही बल्कि हमारे परमप्रिय पिता समान गुरु पर भी पड़ा जब वे हमारा दर्द सहते हैं तो आप सोचिये क्या हमें दर्द नही हुआ होगा लेकिन क्या किया जा सकता है जब जिसको मौका मिलता है सब उसको खूब भाजानते हैं । मानव प्रवृति ही कुछ ऐसी है फ़िर भी हम अच्छा मानव कहलाना पसंद करते हैं । क्या कीजियेगा हम अपना आकलन करते ही नही हैं । लगभग ५ दिन बाद जब हमारे हाथ कंप्युटर लगे तो हमने खूब कंप्युटर को ढोलक की तरह बजाया करते भी क्यों नही आख़िर कई दिन बाद जो यह सुख मिला था

यदि आपको कंप्युटर से दूर रहना हो

बुधवार, 8 अक्तूबर 2008

दादा याद रखेंगे आपको सदा

आपका यह अंदाज अब हम सबको ज्यादा दिन तक देखने को नही मिलेगा क्योंकि आपने संन्यास की घोषणा कर दी है । आपका कार्यकाल बहुत अच्छा रहा है आपने भारतीय क्रिकेट को एक नयी पहचान दी है दुनिया के सभी क्रिकेट खेलने वाले देशों पर आपने जीत दर्ज की है । आपकी विदाई सम्मानजनक तरीके से हो रही है सारा भारतीय क्रिकेट आपका कर्जदार रहेगा । आपने सही समय पर संन्यास लिया है इस समय जब ढेर सारे नए क्रिकेटर आ रहे है और आप पर अच्छा प्रदर्शन का दबाव था आपने संन्यास की घोषणा कर थोड़ा सा अचंभित तो जरूर किया लेकिन मेरे ख़याल से सही किया क्योंकि आप अपने कैरियर के अन्तिम श्रंखला में और अच्छा प्रदर्शन कर सकेंगे वह भी बिना किसी दबाव के । इस समय जो फैब फॉर के विदाई की बात चल रही है उसका श्रीगणेश आपने कर दिया है आशा करते हैं की अन्य लोग भी आपका अनुसरण करेंगे लेकिन प्लीज़े एक साथ संन्यास मत लीजियेगा नही तो टीम बिखर जायेगी । आशा है आप सदा भारतीय क्रिकेट की सेवा करते रहेंगे।

रविवार, 5 अक्तूबर 2008

राहुल भइया दिखावा मत कीजिये

आजकल आप कुछ ज्यादा ही जनकल्याण का कार्य कर रहे हैं ऐसा क्यों क्योंकि चुनाव आने वाला है । मतलब सीधा है की आपलोग जनता को मूर्ख समझते हैं की २ दिन कचरा उठाकर या फ़िर जनकल्याण का कार्य कर आप जनता को अपने पक्ष में कर लेंगे । जितनी म्हणत आप इस कार्य में कर रहे है उतना वक्त आपने अपने कार्यकर्ताओं को देकर समझाया होता की वे जनकल्याण का कार्य करें तो आज आपको न तो कचरा उठाना पड़ता न कुछ और कार्य जो आप आज कर रहे हैं । जनता के पास एक मौका होता है जिसका इस्तेमाल वह ५ साल में करती है और राजा को फ़कीर बना देती है इसका अंदाजा आपको लग गया इसलिए आप जनकल्याण का कार्य कर रहे हैं लेकिन अभी ही क्यों कर रहें हैं पिछले ४ साल से आप कहाँ सोये हुए थे । आपको तो युवराज कहा जाता है तो फ़िर आप यह क्यों कर रहे हैं , यदि आप यह करेंगे तो फ़िर अन्य लोग क्या करेंगे । आप तो जहाँ भी जाते हैं और जो भी करते है वह तो पूर्व नियोजित होता है तो फ़िर ऐसा दिखावा क्यों मत कीजिये मैं तो बस इतना ही कहूँगा ।

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

शास्त्री को हम भूल जाते है

कल गाँधी जयंती मनाई गयी टीवी चैनल में भी खूब दिखाया गया लेकिन लोग शास्त्री जी की लोग भूल गए यह गांधीजी का प्रभाव कहे या कुछ और लेकिन उन्हें याद किया जाना चाहिए वे हमारे देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे पाक के खिलाफ युद्ध में हम उन्ही के नेतृत्व में जीते थे । इस साल तो ईद भी २ अक्टूबर को ही था इसलिए भी लोगों को और कम याद आया । बनारस का यह लाल एक अद्भुत प्रतिभा का धनी था । नेहरू जी के बाद प्रधानमन्त्री पड़ को उन्होंने गरिमा प्रदान की लेकिन हम अक्सर भूल जाते हैं । गाँधी की तस्वीर तो आपको दफ्तरों में भी मिल जायेगी लेकिन इनके लिए तो आपको दिया जलाना होगा बताइए इसमे क्या दोष उनका है यदि वे ज्यादा दिन तक जिंदा होते तो और भी ज्यादा देश के लिए कर गुजरते लेकिन ऊपर वाले ने उन्हें जल्दी ही हमसे छीन लिया। n

गुरुवार, 25 सितंबर 2008

अफ़सोस सोच नहीं बदली

कहा जाता है कि आपके परिवर्तन का सबसे बड़ा परिचायक है कि आपके सोच में परिवर्तन हुआ है कि नहीं । आप लाख अपनी वेश भूषा बदल ले और नए आधुनिक कपड़े पहन ले फ़िर भी आप तभी लोगों कि नजर में पहचाने जायेंगे जब आपकी सोच में परिवर्तन आएगा । आपने गांव के लोगों को देखा होगा जब वे गाँव से बह्गर कमाने के लिए जाते है और फ़िर जब गांव लौटकर आते है तो उनका रंग ढंग सब बदला होता हैवे अपनी भाषा भी भूल जाते हैं इससे सबसे ज्यादा नुक्सान भी उन्ही का होता है गाँव में उन्ही कि किरकिरी होतो है वे उन्ही कि उन्ही कि नजरों में गिर जाते हैं लेकिन इससे हासिल क्या होता है वे तो वही बता सकते हैं ॥ कहने का अर्थ यह कि धोबी का कुत्ता न घर का ना घाट का। ऐसा ही कुछ हुआ पिछले दिनों जब हम दिल्ली गए तो जब वहां से लौटे तो फ़िर लगा कि जैसे फिजा बदल गयी है हर कोई अलग सा दिखने लगा जब हम डेल्ही गए थे उस समय तो लगा था कि जब अगले बार मिलेंगे तो शायद २ गुने उत्साह से मिलेंगे लेकिन अहमर सारा उत्साह काफूर हो चुका था हम आर्ष से फर्श पर आ गए थे महानगर कि संस्कृति हमारे सर पर पूरी तरह चढ़ चुकी थी अहम आपस में ही इज्ज़त खो चुके थे बगल से हम ऐसे गुजर जाते है जैसे कि हर कोई हर किसी से अनजान है अब तो यही लगता है कि हम क्यों मिले बेहतर होता कि हम नहीं मिलते । यदि कोई सोच बदल्लकर आता तो वास्तव में बहुत खुशी होती लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ेगा कि सोच आन्ही बदली । काश सोच बदली होती

बुधवार, 24 सितंबर 2008

हम मेहमानों का सवागत करना जानते हैं

इस समय ऑस्ट्रेलिया की टीम भारत के दौरी पर है और टीम देखने से लगता है की काफ़ी भयभीत है लेकिन हम यह बताना चाहते है की भारत मेहमानों की आवोभगत करना जानती है और आप बिल्कुल ना डरें यह वही देश है जहाँ मेहमानों के स्वागत के लिए लोगों ने अपनी जान तक से दी है । इस समय ऑस्ट्रेलिया टीम बहुत दरी हुई है जिस तरह का माहौल है उस वातावरण को देखकर यह डर होना स्वाभाविक है लेकिन आप अतिरिक्त चिंता न करें । आप अपना पूरा ध्यान खेल पर लगायें नही तो आपका खेल प्रभावित होगा । हम सभी क्रिकेट प्रेमी अच्छा क्रिकेट देखना चाहते है इसलिय आप सिर्फ़ अपना ध्यान खेल पर लगायें ।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

क्यों मानते हैं हिन्दी दिवस

१४ सितम्बर बीत चुका है एक और हिन्दी दिवस चला गया लेकिन हमने हासिल क्या किया । शायद कुछ नही फ़िर वही पुराना राग कोई साहित्यकार आया भाषण दिया और फ़िर समापन हो गया हिन्दी दिवस का , आख़िर ऐसा क्यों न हो और आगे भी होता रहेगा क्योंकि हम भारतीय जो ठहरे हमें हर चीज़ चोरी करने की आदत सी हो गयी है जब हमने अपनी राजनितिक व्यवस्था को ही चोरी कर लिया है तो फ़िर भाषा किस खेत की मूली है । हम और इसके लिए उत्तरदायी संस्था भी इस दिशा में कुछ नहीं कर रही है दुनिया में हर देश का अपनी भाषा में अच्छी किताब है लेकिन भारत में इसकी निहायत कमी है हम इंग्लिश किताब पढने में और बोलने में भी फक्र महसूस करते हैं क्योंकि हम कुछ करना नहीं चाहते हैं ठीक है हम भाग्य के सहारे जो ठहरे । हमारा कल्याण भी दूसरा ही करेगा ।

रविवार, 14 सितंबर 2008

..........नहीं तो पूरा भारत जल उठेगा

लगातार बम्बिस्फोतों से देश के कई शहर जल रहें है जयपुर अहमदाबाद डेल्ही क्या बात करें पूरा देश ही जल जाएगा क्यों नहीं यह रफ्त्तार कम हो रही है या रूक रही है ,इन सब का असर तो आमजनता पर ही पड़ता है । नेताओं का क्या है वो तो एसी के अंदर ही बंद रहते है मरे भी तो जनता जो भी हो जनता का हो । आज भास्कर में छपी रिपोर्ट के अनुसार गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने तीन बार मिडिया से बात करने के दौरान ड्रेस बदली मतलब जनता मरे कोई बात नही हमें तो मंत्री होने का परिचय देना है । जरा कोई पूछे उनसे की उन्हें किसी फैशन परेड में जाना था क्या यदि वहीँ जाना था तो फ़िर दिखावटी तौर पर अस्पताल क्यों गए । हर विस्फोट के बाद वे एक ही तरह का बयान देते है लेकिन आज तक पहले के सभी मामलों की जांच की दिशा में कोई ख़ास प्रगति नहीं हो पायी है आज देश के पास आतंकवाद से लड़ने का कोई हथियार नहीं है एक जो पोटा था उसे भी ख़त्म कर दिया गया तो बताइए अब क्या होगा।

सोमवार, 8 सितंबर 2008

बिहार की हालत और हो गयी बदतर

माना की बिहार में जल का स्तर कम होना शुरू हो गया है लेकिन अब तो वहां की परेशानियाँ और भी बढ़ गयी है क्योकि वहां अब महामारी का प्रकोप काफ़ी बढ़ गया है सही मातृ में वहां दवाई उपलब्ध नहीं है लोग मरन्नासन्न अवस्था में हैं लेकिन सुनाने वालों की संख्या बहुत कम है। बिहार को जो सुविधा मिली है वह काफ़ी काम है यदि १००० रूपया को ४० लाख लोगों में बांटे तो वह २५०० से कुछ ही ज्यादा होता है तो आप ख़ुद ही समझिये की जो लोग इतने दिनों में अपना घर द्वार सहित कितने रिशेदारों को भी खो चुके है जरा सोचकर देखिये इतने कम पैसे में उनके किस जरूरत की पूर्ति होगी न तो वे इस पैसे से अपना घर बनवा सकते हैं और न ही कुछ अन्य चीजें । बहुत होगा तो वे इस पैसे से वे कुछ दिनों तक सिर्फ़ अपना पेट ही भर सकते हैं । लेकिन आगे क्या होगा इस बारे में किसी ने कुछ नहीं सोचा । इस समय जरूरत है की हम सभी देश्वाशी बिहार के लोगों के साथ खड़ा हों क्योंकि उन्हें इस समय आर्थिक के साथ साथ भावनात्मक सहयोग की आवश्यकता की जरूरत है ।

शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

क्या करें यहाँ कोई पैसा नहीं लेता

बहुत हल्ला कर रही थी सरकार।कुछ नही होगा लेकिन बहुत कुछ हो गया । परमाणु डील के नाम पर खरीद फ़रोख्त कर सरकार तो बच गयी लेकिन जिस चीज़ के लिए आपने इतना किया वहीँ पर जाके नैया लटक गयी , मनमोहन सरकार ने इस मुद्दे पर जनता सहित अन्य राजनितिक दलों को भी धोखा दिया है । आज हमारी संप्रभुता ताक पर रख दी गयी है जिसके बिना किसी राज्य का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता लेकिन अब हो भी तो क्या सरकार अमरीकी जाल में फंस ही गयी है सरकार को आख़िर कहना ही पड गया की अब हम परमाणु परीक्षण नहीं करेंगे जी की बिल्कुल नहीं होना चाहिए था कहने का अर्थ यह है की आपकी सरकार है तो आपके मन में जो भी आएगा आप करते जाइयेगा आप यह नही देखियेगा की इसका क्या असर होगा।सरकार का यहाँ भी वश नहीं चला नहीं तो यहाँ भी खरीद फ़रोख्त कर लेते लेकिन क्या करें लोग हैं की घूस लेंगे ही नहीं क्योंकि वे बहुत इमानदार हैं ।

मंगलवार, 2 सितंबर 2008

कौन सुनेगा बिहार की .......................

इन दिनों बिहार बाढ़ की चपेट में है और लगभग ४० लाख लोग इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं । इस मुश्किल की घड़ी में हम सब देश्वाशी को चाहिए की बिहार की जनता का साथ दे लेकिन देखिये सरकार ही इन लोगों के साथ नहीं है यदि सरकार कोई दिशानिर्देश जारी भी करती है तो अफसरशाही का तो यह आलम है की वे सरकार पर दोष लाद देते हैं जरा सोचये क्या इसी चीज़ के लिए हमारे नेता वोट मांगने आते हैं । जब काम पड़ी तो हाथ फैलाकर वोट मांग लिया अब समय है की सरकार भी उन सभी समस्या से ग्रस्त लोगों की मदद करे जो बाढ़ रुपी आपदा का सामना कर रहें हैं । यदि हम दिल्ली में बैठें बिहार के नेताओं की बात करें तो वे भी लोगों की मदद करने के बजाय इसका इस्तेमाल चुनावी अभियान के रूप में कर रहें हैं। जो भी दल वाले हैं वो इस समय यदि लोगों की मदद करते तो उन्हें आराम से वोट मिल जाता लेकिन वो चीज़ कोई नहीं करेगा । केन्द्र सरकार ने १००० करोर का पॅकेज दिया है लेकिन कितना लोगों तक पहुंचेगा इस बारे में अभी संदेह ही है।

गुरुवार, 28 अगस्त 2008

क्यों अब तो आपका मुंह बंद हो जायेगा न

श्रीलंका में टेस्ट सीरीज़ के हारने के बाद सबका यही कहना था कि भारत वनडे श्रंखला भी हारेगा कहना भी सही था क्योंकि जिस तरह से टीम की दुर्गति हुई थी उससे तो यही लगता था की लोग सही कह रहे हैं लेकिन क्या हुआ असली परिणाम सभी ने देख लिया इससे सब को यह पता चल गया होगा की धोनी किस चिडिया का नाम है । अब तो शायद यही लोग कहने लगेंगे की असस्भव को सम्भव करने वाली चिडिया का नाम धोनी है और जो लोग चैनलों के स्टूडियो में बैठकर सिर्फ़ बक बक करना जानते हैं उन्हें भी पता लग गया होगा की हमारी भविश्यवाणी कितनी सच थी । माना की कुंबले हार गए लेकिन इसी आधार पर धोनी के बारे में कहना ग़लत होगा । ऐसा दो बार हो चुका है । ऑस्ट्रेलिया में हम टेस्ट हारे फ़िर धोनी ने वनडे जीती वह भी बड़े शान से , फ़िर यही चीज श्रीलंका में भी हुआ हम पहली बार श्रंखला जीते । इसलिए यह कहना की पहले जो हुआ वही फ़िर होगा बिल्कुल ग़लत है । यदि यह देखते हुए टेस्ट की कप्तानी भी यदि माही को मिल जाए तो कोई आश्चर्य नही होना चाहिए ।

सोमवार, 25 अगस्त 2008

चैनल वालों को मिल गया मसाला

किसी ने आशा नहीं की थी कि भारत श्रीलंका में लगातार २ एकदिनी मैच जीत लेगा लेकिन भारतीयों के संयुक्त प्रयासों से ऐसा हुआ तो अब चैनल वालों को एक नयी चीज़ मिल गयी है । पहले वे दिखाते थे की भारत को एम् फैक्टर यानी मुरली और मेंडिस का काट धुन्धना होगा लेकिन कल जब भारत के खिलाड़ियों ने उसकी खूब ठुकाई की है तब भी चैनल और अखबार वाले यही दिखायेंगे की अब देखिये मेंडिस की काट ढूंढ ली गयी है । क्या एक ही मैच हर चीज़ का पैमाना होता है ठीक ऐसा ही गाले के दूसरे टेस्ट के बाद भी हुआ था उस समय भी लिखा गया कि भारत ने मेंडिस की काट ढूंढ ली है और फ़िर तीसरे टेस्ट में हम हार गए ऐसा न हो की हम फ़िर वैसा ही करें। मुरली तो वैसे भी हमारे खिलाफ चल नहीं रहे है तो फ़िर एम् फैक्टर का डर कैसा। लेकिन हमें यानी चैनल व अख़बार वालों को मसाला तो मिल ही गया यदि विश्वास न हो तो कल का अखबार जरूर देखियेगा ।

गुरुवार, 21 अगस्त 2008

जीतने के बाद ऐसा क्यों ?

इस बार का ओलंपिक वाकई कई मामले में हमारे लिए महत्त्वपूर्ण रहा है । पहली बार हम हाकी के अतिरिक्त किसी अन्य स्पर्धा में गोल्ड जीतकर लाये हैं और पहली बार तीन मैडल जीतकर लाये हैं इससे पहले हमारा देश अधिकतम दो मेडलों तक सीमित हो गया था लेकिन इस बार का प्रदर्शन काफ़ी सारी आशाएं लेकर आया है इससे हमें आगे अपने प्रदर्शन को सुधारने में मदद मिलेगी , इस बार भी जो पदक जीते गएँ हैं उसमे सरकार से ज्यादा उनके अपने पर्सनल प्रयासों का हाथ है । उन लोगों ने जमकर म्हणत की और बीजिंग जाकर देश का नाम ऊँचा करके आए । लेकिन उसके बाद क्या होता है हम सभी जानते हैं एअरपोर्ट पर उतरने के बाद खिलाड़ी सबसे पहले राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री व खेलमंत्री से मिलने चला जाता है आख़िर क्यों ? जब हमारे देश में खिलाड़ियों को उचित प्रशिक्षण नहीं मिलता तब यही देश को चलाने वाले क्यों नहीं आगे आते उस समय तो कान में तेल डालकर सोये रहते हैं उस समय कुछ भी पूछने पर सब अपनी जिम्मेदारी से भागते हैं तो फ़िर इस समय क्यों श्रेय ले रहें हैं क्यों अखबारों के मुख्य पृष्ठपर अपनी तस्वीर लगवाना चाहते हैं । भारत के खिलाड़ियों में भिकाफी दम है ल्जरूरत है उन्हें अच्छी सुविधा की यदि वो उन्हें मिल जाए तो हम भी चीन बन सकते हैं । भारतीय खिलाड़ी म हर कोई अभिनव बिंद्रा नहीं है जो की अकूत संपत्ति का मालिक है इसलिए यह सुविधा तो सरकार प्रदान करे । उसके बाद सब खुश रहेंगे फ़िर आप श्रेय लीजिये न कोई ऊँगली नही उठाएगा फ़िर तो सब आपका गुणगान करेंगे । जीतने के बाद इनामों की बरसात की जाती है तह ट्रेनिंग के दौरान क्यों नही दी जाती है जिस समय उसकी जरूरत होती है और जब जीत जायेंगे तो लाखो करोरों रुपये दिए जाते हैं जो की पूर्णतया ग़लत है।

सोमवार, 11 अगस्त 2008

आखिर क्यों न अंगुली उठाई जाए

भारत श्रीलंका के बीच ३ टेस्ट की सीरिज ख़त्म होने को है और भारत के मध्यक्रम के ४ धुरंधरों का क्या प्रदर्शन रहा है हम सभी जानते हैं गांगुली तथा सचिन ने तो एक भी हाफ sएन्चुरी नहीं बने है और भारत के दयनीय प्रदर्शन का प्रमुख कारन भी यही है की सचिन द्रविड़ गांगुली व लक्ष्मण नही चले वरना जिसके आगे मैक्ग्राथ ली व वॉर्न ने दम तोड़ दिए वहां मेंडिस की क्या औकात है । यह कहकर मैं मेंडिस से उसकी सफलता नहीं छीनना नही चाहता बेशक वह अच्छा गेंदबाज है लेकिन भारतीय बल्लेबाज अच्छा नहीं खेले इसलिए हमारी हार हुई । इन चीजों के मद्देनजर यदि इन्हें टीम से हटाने की बात यदि कही भी जाती है तो इसमे किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए। बेहतर तो यही होता की ये ख़ुद अपनी यथास्थिति को देखते हुए संन्यास ले लेते । दौरे से पहले सचिन ने कहा था की मैं इस दौरे पर अपना सर्वश्रेष्ठ दूँगा तो क्या यही उनका सर्वश्रेष्ठ है तब तो लोग हो हल्ला करेंगे ही न । द्रविड़ तो लगता है कप्तानी छोड़ने के बाद एकाध पारियों को छोड़ दे तो बल्लेबाजी करना ही भूल गए हैं । गांगुली के समर्थन में तो पूरा बंगाल ही है । इ सभी ने अच्छी स्पिन गेंदबाजी के सामने घुटने टेके हैं जो की भारत के लिए शुभ संकेत नही हैं क्योंकि यही भारत की मजबूती थी और वहां भी हम गच्चा खा गए।

रविवार, 8 जून 2008

कत्ल की रात से रहे जूझने को तैयार

कहा जाता है कि मतदान से पहले की रात नेताओं के लिए और परीक्षा से पहली कीरात परीक्षार्थियों के लिए कत्ल की रात होती है । लेकिन इस रात का सामना कैसे करें इस बात को लेकर परीक्षार्थी असमंजस मे हैं क्योंकि उनकी तैयारी पूरी नहीं है ऐसे मे जब उनकी तैयारी के बरे मे किसी से बात की जाए तो उनका सीधा सा जवाब होता है बस यार गप्पें हांक देंगे ऐसे ही तो अब तक नम्बर पाते आयें हैं तो अब चिंता क्यों करे । बात भी कुछ सही प्रतीत होती है क्योंकि उनका यही फार्मूला उन्हें अभी तक सफलता देते आया है तो जब तक असफलता हाथ नहीं लगेगी तब तक तो वे दूसरे तरीके को क्यों अपनाएंगे ॥

शनिवार, 7 जून 2008

हमारी रक्षा कौन करेगा

शिवाजी की मूर्ति बनने के खिलाफ लोकसत्ता के संपादक ने जो लिखा उसके लिए उन्हें किसी से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं थी , उन्होंने अपने अधिकार का प्रयोग संविधान के द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत किया था , लेकिन घर पर इस मामले को लेकर तोड़ फोड़ की गयी जो महाराष्ट्र के राजनितिक दल के किसी विधायक ने कराई थी । क्या इनके खिलाफ मौलिक अधिकारों के हनन का मामला नहीं बनता है । वैसे भी इधर पत्रकारों पर हमले की घटनाएँ काफी बढ़ गयी है । पटना मी भी मेडिकल कोलेज के छात्रों ने पत्रकारों को पिता , मैं पूछता हूँ उनका दोष क्या था ,वे पत्रकारों की ग़लत कारगुजारियों को कैमरे मे उतार रहे थे यही उनकी गलती थी न साथ मे डॉक्टरों ने अभिभावकों को भी पीटा। गुजरात मे भी २ पत्रकारों को पुलिस प्रशासन ने तंग कर रखा है क्या हम पत्रकार भाई ऐसे ही पीटते रहेंगे । दुनिया को सच बताने के लिए हम दिन रात जागते हैं लेकिन हमारे सुरक्षा की भी तो गारंटी होनी चाहिए ।

गुरुवार, 5 जून 2008

मूर्ति बनाना ज्यादा महत्वपूर्ण है

महाराष्ट्र सरकार ने निर्णय किया है कि मैरीन ड्राइव पर शिवाजी की मंजिली मकान के जितनी ऊँची मूर्ति लगेगी और साथ ही वर्तमान सरकार के कार्यकाल के अंतर्गत ही इस कार्य को पूरा कर लिया जाएगा । इस पर २०० करोर से ज्यादा का खर्च आएगा । कहने का मतलब सदा है की सरकार की प्राथमिकता में अब मूर्ति लगाना ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है । प्रदेश सरकार को विदर्भ के किसानों की कोई चिंता नहीं है । मैं यह बिल्कुल नही कहता की शिवाजी की मूर्ति नहीं लगनी चाहिए लेकिन ऐसा भी क्या है की इतनी बेदी राशिसिर्फ़ मूर्ती लगवाने में खर्च की जाए इससे अन्य समस्यायों का समाधान किया जा सकता है जैसे बार बालाओं का पूनर्स्थापन , किसानों की समस्यायों का समाधान ,गरीबों के लिए मकान बनवाने का कार्य इत्यादि। sहिवाजी की चोटी मूर्ती लगाकर भी उनके प्रति श्रद्धा अर्पित की जा सकती है ।

सोमवार, 2 जून 2008

विषय को लेकर ही थी समस्या

भोपाल में पिछले दिनों एक नए अखबार के आने से ऐसा लगा कि यहाँ भी मीडिया वर शुरू हो गया है । इसकी परिणिति तब देखने को मिली जब भोपाल के मीडिया dhurandharon ने इस पर एक परिचर्चा का आयोजन कर दिया जिसका विषय था भोपाल में मीडिया वर किसके हित में । वास्तव में वर तो दो पक्षों के मध्य होता है लेकिन भोपाल का युद्ध तो एकतरफा है । यहाँ एक नया मीडिया हॉउस अपनी पैठ ज़माने के लिए दूसरे की ग़लत ख़बरों को बिना मतलब का निशाना बना रहा है । यह कार्रवाई पूरी तरह से एकतरफा है दूसरे ने इसका कोई प्रत्युत्तर नही दिया , यह लड़ाई एक तरफ़ से ही तो है , तो फ़िर यह वार कैसा वार में तो दो तरफा कार्रवाई होती है । लेकिन यह बात वहाँ बिल्कुल नहीं आयी , जबकि संबंधित अख़बारों के एडिटर भी वहाँ थे । सब अपने दिमाग में यह बैठा चुके थे कि हाँ यह मीडिया वार है , तो फ़िर क्या किया जा सकता है । इस चर्चा में लग रहा था कि जोरदार गहमागहमी होगी लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ इसलिय शायद जब चर्चा समाप्त हो गयी तो कुछेक लोग आयोजकों को शांतिपूर्ण माहौल में चर्चा के समाप्त होने पर बधाई दे रहे थे , गहमागहमी न होने का एक कारण यह भी था कि आक्रमंनकर्ता अखबार का कोई प्रतिनिधि वहाँ नहीं था ।

शुक्रवार, 30 मई 2008

बहुत देर हो गयी

एक दिन पहले भोपाल में कई बड़े अधिकारियों के यहाँ आयकर अधिकारियों ने छापा मारा व बड़ी मात्र मात्रा में बेनामी संपत्ति पकड़ी । जिसके मध्यम से पता चला कि सारा पैसा जनकल्याण की योजनाओं का है जिसमें इन आला ओफ्फिसर्स ने घोटाला किया था । अब तो ये पकड़ा गए हैं इन पर क्या कार्रवाई होगी यह देखने वाली बात होगी हो सकता है सियासी ताकत और पैसे के बल पर ये छूट जाएं । क्योंकि पूर्व में भी ऐसी घटनाएँ हो चुकी है । कहने को तो इन्हें पकड़ा जाता है लेकिन बाद में क्या होता है यह हम सभी जानते हैं । जिसके पास पैसा है आज के ज़माने में उसी की चलती है ।जेसिकालाल नीतिश कटारा के कांड में न्यायपालिका ने अपना दायित्व बखूबी निभाया है आशा है जब इन अधिकारियों के खिलाफ भी मामला अदालत में जाएगा तो इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी ।

शनिवार, 24 मई 2008

क्यों बनाया ये आरक्षण

आरक्षण के नाम पर नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहें हैं लाभ जो भी हो रहा है वह उन्हें ही हो रहा है बेचारी आम जनता का जो भी नुकसान हो रहा है उके लिए कौन जिम्मेवार है । आज़ादी के बाद से ही इस शास्त्र का इस्तेमाल नेताओं द्वारा अपने राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है । जरा सा सोचिये इस लड़ाई में नेताओं ने क्या खोया है क्या कभी उनकाकोई अपना मरा है शायद ही इसका कोई उदाहरण मिले क्योंकि जिस छेसे को वे जन हितों से जोड़ रहे हैं वह वास्तव में जनता का हित न होकर नेताओं का हित बनकर रह गया है । हम साधारण लोग तोइस आरक्षण की आग में जल रहें हैं अपने ही भाई की जान लेने पर तुले हैं जो कल तक हमारा सुख -दुःख का साथी था । क्यों न इस आरक्षण को ही ख़त्म कर दिया जाय न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ।

शुक्रवार, 16 मई 2008

कुछ तो सीखें इनसे

जयपुर में पिछले दिनों दर्दनाक बमविस्फोट हुआ यह्ब हमारी सरकार की नाकामी को दिखता है इसके साथ ही हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा पर भी सवाल खड़े करहै कोई भी सामान्यतया इनसे कुछ नही सीखना चाहेगा लेकिन इनकी अपने काम के प्रति ईमानदारी हर कोई के साथ हमारे देश की सरकार भी सीख सकती है। काम चाहे बुरा हो या अच्छा उसके दो पक्ष होते हैं इन आतंकियों के काम के भी दो पक्ष हैं जिसे कोई सामान्यतया स्वीकार नहीं करना चाहेगा लेकिन जरा सोचकर देखिये क्या वे अपना काम सही तरीके से नही करते बिल्कुल करते हैं काम तो मानवीय संवेदना की दृष्टि से काफी मर्माहत करने वाला है जिससे मनुष्य होने के नाते हर किसी को बचना चाहिए । जितनी तत्परता से आतंकियों ने इस काम को अंजाम दिया है उतनी ही तत्परता यदि सरकार दिखाई होती तो आज हमें अख़बारों की हेद्लाइएन् में हमे यह ख़बर देखना नहीं पड़ता और न लोगों के दिल में यह दहशत। इस देश की सरकार से यही कहना है की प्लीज तत्परता दिखाएँ उनकी तादाद तो आपसे कम ही है तो फ़िर दिक्कत क्या है बस आपना काम इमानदारी से करें सिर्फ़ चुनाव के समय ही नहीं बल्कि अन्य समय पर भी।

मंगलवार, 6 मई 2008

बहुत अच्छी पहल

एकाध साल पहले यू जी सी ने जो प्रावधान किया था उसके अनुसार lecturership के लिए नेट की पात्रता ख़त्म कर दी थी लेकिन उसे पुनः लाये जाने का प्रावधान करना एक अच्छा कदम है क्योंकि इससे इसकी गुणवत्ता में गिरावट आयी थी lएकं बार पुनः नेट की पात्रता को लागु करने का प्रावधान करना एक सराहनीय कदम है । भारत में बहुत सारे कॉलेज ऐसे हैं जहाँ से फर्जी डिग्री प्राप्त की जा रही है । जब नेट के प्रावधानों को ख़त्म किया तोकॉलेज में छात्रों बाढ़ सी आ गयी थी लेकिन गुणवत्ता पर कोई धयान नही दिया गया । जरा सा सोचिये जिनके पास ख़ुद कोई क्वालिटी नही है वे कॉलेज में नियुक्त होने के बाद क्या खाक अच्छा पढ़एँगे।यू जी.सी को चाहिए की पुनः जल्द से जल्द वेह नेट की पात्रता को लागु करे ताकि इस क्षेत्र की क्वालिटी को बनाये रखा जा सके , साथ ही यू जी सी को चाहिए की जो आर्थिक सहायता रिसर्च कार्यों के लिए दी जा रही है उसका भी समय समय पर मूल्यांकन करे । आज अध्यापन के क्षेत्र में कम लोग आ रहे हैं जो आ रहें है वे इसे टाइम पास का जरिया मानकर आ रहे हैं । यह एक अच्छा जॉब है नाम सोहरत सब है इसमे लेकिन अच्छे तरीके से काम करने वालों की कमी है । आज स्थिति यह है की विज्ञान में उच् शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या काफी कम हो गयी है आख़िर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के इस युग में पूरे देश के लिए यह चिंता का विषय है । नेट की पात्रता के अतिरिक्त यू जी सी इन मामलों पर भी तत्काल कोई सकारात्मक कदम उठाये ।

शुक्रवार, 2 मई 2008

कैसे कम होगी महंगाई

लाख दावों के बावजूद महंगाई कम होने का नाम नही ले रही है सरकार की विदेश व्यापर निति भी आ गई जिसमें आयातों परकाफी छूट दी गयी व निर्यातों को महंगा बनाया गया । इसके अतिरिक्त रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की मौद्रिक निति भी आ गई लेकिन इन सारे प्रावधानों के बावजूद भी मुद्रा स्फीति कम होने का नाम नही ले रही है यह पिछले ४-५ साल के सारे रिकार्ड तोड़ चुकी है । सरकार लाख दावे कर रही है लेकिन बावजूद इसके मुद्रास्फीति कम होने का नाम नही ले रही है । इसको लेकर सरकार की चिंता चुनावी हो सकती है लेकिन आम जन की समस्या कुछ इससे बहुत अधिक है । लोगों के किचन का बजट काफी बढ़ गया है सरकार द्वारा दावा करने के बावजूद की अनाज का उत्पादन इस साल आशा से अधिक होगा फ़िर भी दाम घटे नही हैं और उल्टे अनाजों की कालाबाजारी भी जारी है । पिछले दिनों डेल्ही में ३ लाख टन आनाज पकडे गए व खाद्य तेल भी पकड़े गए । यही कालाबाजारी लोगो की जेबे खाली कर रहा है ।

गुरुवार, 1 मई 2008

बहुत बढ़िया कदम

संसद भवन हमारे देश की आत्मा है वहाजाने वाले जनप्रतिनिधि का प्रमुख काम जनता की सेवा करना है म्लेकिन हो क्या रहा है संसद का समय जाया किया जा रहा है संसद भवन लगता है एक मलल्युद्छ का अखाडा बन गया है पता नही इन जन्प्रतिनिधिनियों को शर्म भी आती है की नही । लगभग एक लाख रुपये हर दिन का खर्च आता है लेकिन ये लोग सिर्फ़ उस समय को बर्बाद ही करते हैं। लोकसभा के अध्यक्ष जी का ३२ सांसदों को निलंबित करने का कदम एक सकारात्मक कदम है । इससे अन्य लोगों को शिक्षा ही मिलेगी जो की अब तक इस तरह के ओछी काम में मसह्गूल थे हो सकता है इससे थोडी नींद अन्य लोगों की खुले । अध्यक्ष जी के इस कदम को राजनीती से प्रेरित नही देखना चाहिए क्योंकिं इसमें ही लोकतंत्र की भलाई है

मंगलवार, 22 अप्रैल 2008

अदालत में बढ़ते मामले

ताजा जानकारी के अनुसार कुल मिलाकर ३ करोड़ मामले न्यायालय में लंबित हैं यदि अदालती मामलों की संख्या ऐसे ही लगातार बढ़ती गयी तो वो दिन दूर नही जब लोगों का विश्वास न्याय व्यवस्था उठ जाएगा

बुधवार, 16 अप्रैल 2008

मायावती की मूर्ति

मायावती ने कल लगभग शाहजहाँ की तरह का कार्य किया मतलब उन्होंने जिंदा ही अपनी मूर्ति बना डाली ताकि मरने के बाद जनता को कोई परेशानी न हो और उनकी मूर्ति पर आसानी से फूल माला चढाया जा सके।