गुरुवार, 21 अगस्त 2008

जीतने के बाद ऐसा क्यों ?

इस बार का ओलंपिक वाकई कई मामले में हमारे लिए महत्त्वपूर्ण रहा है । पहली बार हम हाकी के अतिरिक्त किसी अन्य स्पर्धा में गोल्ड जीतकर लाये हैं और पहली बार तीन मैडल जीतकर लाये हैं इससे पहले हमारा देश अधिकतम दो मेडलों तक सीमित हो गया था लेकिन इस बार का प्रदर्शन काफ़ी सारी आशाएं लेकर आया है इससे हमें आगे अपने प्रदर्शन को सुधारने में मदद मिलेगी , इस बार भी जो पदक जीते गएँ हैं उसमे सरकार से ज्यादा उनके अपने पर्सनल प्रयासों का हाथ है । उन लोगों ने जमकर म्हणत की और बीजिंग जाकर देश का नाम ऊँचा करके आए । लेकिन उसके बाद क्या होता है हम सभी जानते हैं एअरपोर्ट पर उतरने के बाद खिलाड़ी सबसे पहले राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री व खेलमंत्री से मिलने चला जाता है आख़िर क्यों ? जब हमारे देश में खिलाड़ियों को उचित प्रशिक्षण नहीं मिलता तब यही देश को चलाने वाले क्यों नहीं आगे आते उस समय तो कान में तेल डालकर सोये रहते हैं उस समय कुछ भी पूछने पर सब अपनी जिम्मेदारी से भागते हैं तो फ़िर इस समय क्यों श्रेय ले रहें हैं क्यों अखबारों के मुख्य पृष्ठपर अपनी तस्वीर लगवाना चाहते हैं । भारत के खिलाड़ियों में भिकाफी दम है ल्जरूरत है उन्हें अच्छी सुविधा की यदि वो उन्हें मिल जाए तो हम भी चीन बन सकते हैं । भारतीय खिलाड़ी म हर कोई अभिनव बिंद्रा नहीं है जो की अकूत संपत्ति का मालिक है इसलिए यह सुविधा तो सरकार प्रदान करे । उसके बाद सब खुश रहेंगे फ़िर आप श्रेय लीजिये न कोई ऊँगली नही उठाएगा फ़िर तो सब आपका गुणगान करेंगे । जीतने के बाद इनामों की बरसात की जाती है तह ट्रेनिंग के दौरान क्यों नही दी जाती है जिस समय उसकी जरूरत होती है और जब जीत जायेंगे तो लाखो करोरों रुपये दिए जाते हैं जो की पूर्णतया ग़लत है।

3 टिप्‍पणियां:

Nitish Raj ने कहा…

ये ही तो विपदा है, ओलंपिक में खिलाड़ियों से ज्यादा तो अधिकारी जाते हैं। सही कहा हर कोई अभिनव नहीं होते।

दिनेश पालीवाल ने कहा…

ये साले पदक ले कैसे आए ?
बांकी खिलाड़ी क्यों नहीं?
इस बारे में सोचना पड़ेगा |
सोच लिया |
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उसी तरह हमारे देश में
आपका धर्म क्या है?
आपकी जाति क्या है?
पैसा कितना खर्च खर्च कर सकते हैं?
इत्यादि
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Udan Tashtari ने कहा…

विडंबना है यही!!