आरक्षण के नाम पर नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहें हैं लाभ जो भी हो रहा है वह उन्हें ही हो रहा है बेचारी आम जनता का जो भी नुकसान हो रहा है उके लिए कौन जिम्मेवार है । आज़ादी के बाद से ही इस शास्त्र का इस्तेमाल नेताओं द्वारा अपने राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है । जरा सा सोचिये इस लड़ाई में नेताओं ने क्या खोया है क्या कभी उनकाकोई अपना मरा है शायद ही इसका कोई उदाहरण मिले क्योंकि जिस छेसे को वे जन हितों से जोड़ रहे हैं वह वास्तव में जनता का हित न होकर नेताओं का हित बनकर रह गया है । हम साधारण लोग तोइस आरक्षण की आग में जल रहें हैं अपने ही भाई की जान लेने पर तुले हैं जो कल तक हमारा सुख -दुःख का साथी था । क्यों न इस आरक्षण को ही ख़त्म कर दिया जाय न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ।
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