गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

यदि ऐसा होता तो कितना अच्छा होता

जब संत वैलेंटाइन को रजा ने राजद्रोह का आरोप लगाकर फांसी दी थी उसके बाद जो यह एक पर्व की तरह मनाया जा रहा है तो संत वल्लेंतिने की आत्मा भी सोच रही होगी की मैंने तो सपने में भी नही सोचा नही था की यह २१ वी सदी में इतना प्रसिद्द होगा । लेकिन बात सोचने की है इस पर्व से फायदा किसका फायदा होगा आज यह कहने की बात नही की इससे न तो हमारा फायदा होगा न किसी दूसरे का इससे सिर्फ़ फायदा बाजार को है ।
कितना अच्छा होता इस प्यार पर्व पर पूरी दुनिया भेदभाव मिटाकर एक हो जाती और सारा भेदभाव मिट जाता तो फ़िर कहा जाता न की प्यार की जीत हुयी ऐसे में कौन क्या करता है कौन क्या पाटा है किसी को पता ही नही चलता बस प्रत्येक साल यह आता है और मुनाफा कमाकर चला जाता है । आज जिसको प्यार कहा जाता है उसके इजहार के लिए इस दिन का होना इतना अनिवार्य नही है वह तो किसी भी दिन हो सकता है । काश इस दिन पूरी दुनिया एक हो जाती कोई भेदभाव जात पात उंच नीच के नाम पर नही होता मजहब के नाम पर लडियां बंद हो जाती तो सही मायने में वैलेंटाइन डे की जीत होती।

शनिवार, 31 जनवरी 2009

महिला समानता कोरी बकवास है

महिलाओं के लिए समानता की बात स्वीकार करना अब भी हमारे समाज के लिए काफ़ी दुश्वार है । मंगलौर के घटना से तो यही लगता है की महिला समानता की बात सिर्फ़ हमारे मुख में है लेकिन यदि यह हमारी आदत में नही है तो फ़िर हम पीठ पीछे हम उनकी बुरे करें या फ़िर श्रीराम सेना जैसी कार्रवाई में भाग ले । नाम देखिये क्या है श्रीराम लेकिन काम रावण वाला , रावण भी तो सीता माता के साथ कभी शारीरिक बदतमीजी नही किया था लेकिन यहाँ नैतिकता का चोला ओढ़ने वाले तो सिर्फ़ नाम को नैतिक है और यदि उनका काम देखा जाए तो वह बहुत ही बुरा है । इस संस्था के प्रेजिडेंट का क्या कहना है वह तो आपने सुना ही होगा उससे तो यही लगता है की मालेगाँव की घटना में भी उनका हाथ है । जो लोग देश को अस्थिर करने में लगे हैं देश को बेचना चाहते हैं उनसे क्या आशा की जा सकती है । जरा सोचिये किआज तक महिला विधेयक क्यों पास नही हो पाया । पुरूष तो कुछ भी करें वह सही है लेकिन आज जब यही काम महिला करे तो वह ग़लत है । सही ग़लत को तय करने वाले ये कौन होते हैं क्पोई टी इनसे पूछे । आज हम कहने को आधुनिक समय में जी रहे हैं लेकिन समाज का आधा भाग यानी महिलाएं आज भी अंधेरे में हैं .

शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

अब तो पाक सुधर जाओ

हाँ ये ओबामा हैं और ४० साल पहले जिस देश में काले लोगों को मतदान का अधिकार नही था आज उसी देश के सबसे ऊँचे पड़ पर एक अश्वेत आदमी बैठा हुआ है । आते ही उन्होंने अलग राग आख्तियार किया है और पाक को चेतावनी दी है की अपना रवैया आतंकवाद के प्रति सुधारो नही तो उसका कड़ा परिणाम भुगतना होगा। एक रिपोर्ट के अनुसार पाक को जो भी अमरीकी मदद आतंक से लड़ने के लिए दी गयी थी उसके ८० % से भी अधिक का उसने दुरूपयोग किया है । यह देखते हुए ओबामा ने सख्त हिदायत दी है की अब उसे सही तेरीके से आतंक के ख़िलाफ़ लड़ना होगा । वैसे भी अमरीका ने आफ्गानिस्तान में अपनी लडाई को जारी रखने के लिए नया साथी खोजना शुरू कर दिया है जो पाक से ज्यादा विश्वशनीय होगा उसके बाद पाक पर ज्यादा नकेल कशी जा सकेगी और भारत का इससे ज्यादा फायदा होगा.

बुधवार, 14 जनवरी 2009

नही बदली है हालत कोशी को कोसने वालों की

हाँ दोस्तों आप सब को यह मंजर तो याद ही होगा पूरा देश उस समय इन्ही के बारे में सोच रहा था । सरकार ने जहाँ बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया तो पूरे भारत से उनके लिए मदद की बयार आ रही थी लेकिन आज क्या हालत है उनकी यह जानने में न हमारी न ही आपकी ही कोई रूचि है । हमारी तो मजबूरी हो सकती है लेकिन सरकार की क्या मजबूरी हो सकती है क्योंकि जनता ने उन्हें चुना है और वे इस समय उनके दुःख से मुंह मोडे हुए है । क्या करे जब तक इसे लेकर राजनीति करनी थी कर ली अब क्या है हमारा ।
आज भी हालत वैसे ही हैं बदला है तो बस इतना ही की अब वहन कोशी का पानी नही है । लेकिन लोगों की हालत तो बदतर हो गयी है क्या करे वे बही बाढ़ में अपना सब कुछ तो गवां तो चुके है अब उनके पास कुछ बचा ही नही है । आज वे भूखे पेट सो रहे हैं रात की ठंढ आग तापकर काट रहे हैं सो रहे हैं जानवरों के साथ । भूख ने तो लोगों को काल का नेवला बना दिया है । वहां तो खुशी की कोई बयार ही नही है न बच्चे न ही कहीं कोई सहनाई बज रही है।
वहां तो जिन बच्चों ने उस बाढ़ के समय जन्म लिया था उसका नाम भी उसी तरह का करदिया जैसे की कोशिका या फ़िर प्रलाय्मान इस तरह का नाम बच्चों को इस बाढ़ की दुःख भरी गाथा जिंदगी भर याद दिलाएगा ।
बिहार सरकार तो बस इस बात के लिए खुश हो रही है की हमने जैसा आपदा प्रबंधन किया है वैसा आज तक हुआनही है और लोग हमसे पूछने के लिए आ रहे है की आपने इतना बड़ा प्रबंधन कैसे किया ।

नही सुधारी है हालत

शनिवार, 10 जनवरी 2009

मध्यप्रदेश का सिंगुर बना सिंगरौली

एक सिंगूर अभी ख़त्म नही हुआ की दूसरे की तैयारी हो रही है । इस बार बारी बंगाल की नही बल्कि मध्यप्रदेश की है जहाँ सरकार ने सिंगरौली नामक स्थान पर एक पॉवर प्लांट बनने का निर्णय किया है । इससे वहां के लोगों में काफ़ी असंतोष है हो भी क्यों न क्योंकि जब पेट पर लात पड़ती है तो आदमी कुछ भी करने को तैयार हो जाता है । यहाँ एक सवाल पैदा होता है की क्या सिर्फ़ उस क्षेत्र के विकास के बारे में सरकार ही सोचती है जनता को नही लगता की इससे हमारा विकास होगा । यदि जनता को नही लगता तो फ़िर सरकार वैसा विकास करने पर क्यों तुली हुई है जिससे की जनता ही खुश ही नही है । एक तो सरकार जनता की खिलाफत करे और फ़िर विकास की गंगा बहने की बात करे तो फ़िर क्या फायदा कोई हमें बताएगा की दुनिया के किस स्वस्थ लोकतंत्र में ऐसा होता है । हमें बिजली रोटी दाल की कीमत पर नही चाहिए । यदि सरकार रोजगार देने की बात करती है तो ये भी ग़लत है क्योंकि इस पॉवर प्लांट में बहार के लोगों को ही नौकरी मिलेगी यहाँ के लोगों का हाल भी सिंगुर के लोगों के जैसा ही होगा ।

अभी समय है जनता के साथ सलाह मशविरा कर सरकार इस मामले का कोई निदान निकाले नही तो फ़िर पानी की भांति खून बहेगा , लाशें बिछेंगी और फ़िर अंजाम सिंगुर वाला ही होगा।