शनिवार, 31 जनवरी 2009

महिला समानता कोरी बकवास है

महिलाओं के लिए समानता की बात स्वीकार करना अब भी हमारे समाज के लिए काफ़ी दुश्वार है । मंगलौर के घटना से तो यही लगता है की महिला समानता की बात सिर्फ़ हमारे मुख में है लेकिन यदि यह हमारी आदत में नही है तो फ़िर हम पीठ पीछे हम उनकी बुरे करें या फ़िर श्रीराम सेना जैसी कार्रवाई में भाग ले । नाम देखिये क्या है श्रीराम लेकिन काम रावण वाला , रावण भी तो सीता माता के साथ कभी शारीरिक बदतमीजी नही किया था लेकिन यहाँ नैतिकता का चोला ओढ़ने वाले तो सिर्फ़ नाम को नैतिक है और यदि उनका काम देखा जाए तो वह बहुत ही बुरा है । इस संस्था के प्रेजिडेंट का क्या कहना है वह तो आपने सुना ही होगा उससे तो यही लगता है की मालेगाँव की घटना में भी उनका हाथ है । जो लोग देश को अस्थिर करने में लगे हैं देश को बेचना चाहते हैं उनसे क्या आशा की जा सकती है । जरा सोचिये किआज तक महिला विधेयक क्यों पास नही हो पाया । पुरूष तो कुछ भी करें वह सही है लेकिन आज जब यही काम महिला करे तो वह ग़लत है । सही ग़लत को तय करने वाले ये कौन होते हैं क्पोई टी इनसे पूछे । आज हम कहने को आधुनिक समय में जी रहे हैं लेकिन समाज का आधा भाग यानी महिलाएं आज भी अंधेरे में हैं .

6 टिप्‍पणियां:

Admin ने कहा…

this is India my dear

बेनामी ने कहा…

अगर पब संस्कृति का विरोध करना हैं तो सरकार का विरोध करे जो इनको लाइसेंस देती हैं । अगर शराब और सिगरेट का विरोध करना हैं तो फिर उस सरकार का विरोध करे जो इसको बढ़ावा देती हैं । घर मे कोई सिगरेट या शराब ना ले चाहे स्त्री , चाहे पुरूष , चाहे अभिभावक , चाहे बच्चे । अगर "western outfit" का विरोध करना हैं तो पुरूष भी ऑफिस कुर्ते पाजामे या धोती मे जाए और महिला भी साड़ी या सूट मे जाए यानी एक नेशनल ड्रेस कोड बनाया जाए ।पब संस्कृति या युवा पीढी को दोष देने से बेहतर हैं की व्यवस्था और कानून को सुधारे .
मुद्दा manglore मे पब संस्कृति का नहीं था , मुद्दा केवल और केवल नारी को अपमानित करने का था अगर किसी को पब बंद करवाना होता तो वो पब खली करने को कहता नाकि नारियों को मारता पीटता और उनके कपडे उतारता .

Udan Tashtari ने कहा…

हम कहने को आधुनिक समय में जी रहे हैं-जी, सही आंका..दिखावा बस है..भीतर से वही.

संगीता पुरी ने कहा…

समाज में पुरूषों की ही मनमानी चलती है....पुरूषों का पालन पोषण इस ढंग से होता आया है कि महिला समानता की बात अभी तक दिखावा ही है!

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

समाज का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी नारी को अपना गुलाम ही बनाए रखना चाहता है। उसी मानसिकता के लोगों की पक्षधरता जीतने के लिए कुछ लोग इस तरह की राजनीति करते हैं। इन्हें दंडित भी नहीं किया जाता है। इस तरह की घटनाओं पर जब तक व्यापक सामाजिक विरोध प्रकट न होगा। इन्हें रोक पाना संभव नहीं।

Unknown ने कहा…

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